आँधी के मोड़ मे छुपी होती है
पंक्तियाँ उन महान वृक्शोंकी
जो बढ़ना जानते है
टूटने के बाद भी ।
वृक्षों के बीहड़ बारूदमे
पड़नी है चिंगारी ...
न केवल क्षमता किंतु
एक संवेदना है भीतर
जो लाएगी संगठन
उन आजाद हवाओंका
जिनके रौद्र तुमुल्मे
फीरसे जन्म लेगी
एक नई आँधी।
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ॐकार कुलकर्णी
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